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फुटबॉलर बेटियां दूसरों के खेतों में मजदूरी कर काट रही गेहूं

By Dabangdunia News Service | Publish Date: Apr 21 2018 10:38AM | Updated Date: Apr 21 2018 10:39AM
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कैथल। राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में पदक जीतने पर करोड़ों रुपये का इनाम और सरकारी नौकरी भी पक्की। देश के खेल जगत में हरियाणा की छवि ऐसी ही है, लेकिन तस्वीर का दूसरा पहलू बेहद स्याह है। देशभर में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाने वाली की मानस की फुटबॉलर बेटियां इन दिनों दूसरे के खेतों में गेहूं काटने को मजबूर हैं।
 
राज्य व राष्ट्रीय स्तर पर जीत चुकी हैं स्वर्ण पदक
जिले के मानस गांव की इन बेटियों ने राज्य व राष्ट्रीय स्तर पर कई पदक जीते हैं। परिवार की आर्थिक तंगी के कारण इन्हें 20 से 25 दिन खेल छोड़कर सालभर का अनाज एकत्र करने के लिए दिहाड़ी करनी पड़ रही है। इनमें सुदेश हरियाणा की टीम में गोल कीपर हैं। सुदेश के मुताबिक पांच सालों से वह हरियाणा की टीम का हिस्सा हैं। अब तक तीन गोल्ड सहित पांच पदक जीते हैं। वर्ष 2014 में रांची में प्रदेश की टीम को गोल्ड दिलाया था। परिवार में चार बहन व दो भाई हैं।
 
बड़े भाई सहित दो बहनों की शादी हो चुकी है। पिता कर्मबीर व बड़ा भाई बलजीत ईंट भट्ठे पर काम करते हैं। ईंट पथाई के सीजन में वे भी परिवार के साथ काम करने जाती हैं। अब खेतों में गेहूं का सीजन चला हुआ है तो माता-पिता व भाई के साथ दूसरों के खेत में दिहाड़ी करने जाती हैं। इस दौरान खेल भी छोड़ना पड़ता है। परिवार बेहद गरीब है। घर वाले कई बार उसे खेल छोड़ने को कह चुके हैं, लेकिन उसकी जिद के आगे वे झुक जाते हैं।
 
ब्याज पर पैसे लेकर बाहर खेलने भेजते हैं पिता- सुदेश बताती हैं कि खुराक तो दूर खेलों का सामान दिलाने के लिए भी परिवार के पास पैसे नहीं हैं। जब दूसरे जिलों या राज्यों में खेलने के लिए जाती हूं तो पिता ब्याज पर पैसे लेकर बाहर भेजते हैं। सरकार व प्रशासन की तरफ से कोई सुविधा नहीं मिल रही है। खेल का ग्राउंड तक गांव में नहीं है। उबड़ खाबड़ ग्राउंड में अभ्यास करना पड़ता है। वह खुद रेलवे में जॉब करना चाहती हैं।
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