नई दिल्ली। ग्यारह साल पुराने मक्का मस्जिद विस्फोट मामले में यहां की एक विशेष आतंक रोधी अदालत ने स्वामी असीमानंद और चार अन्य को सोमवार को बरी कर दिया। अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष ‘आरोपियों के खिलाफ एक भी आरोप’ साबित नहीं कर सका। फैसले के कुछ घंटे बाद एनआइए मामलों के विशेष न्यायाधीश के रवींद्र रेड्डी ने ‘निजी’ कारणों का हवाला देते हुए अपना इस्तीफा दे दिया। एक राजनीतिक दल ने उनके इस्तीफे पर ‘संदेह’ व्यक्त किया है।
एक वरिष्ठ न्यायिक अधिकारी के अनुसार, ‘रेड्डी ने कहा कि उनके इस्तीफे का इस फैसले से कोई लेना देना नहीं है।’ इस बीच, एआइएमआइएम के प्रमुख और हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने ट्वीट किया, ‘मक्का मस्जिद विस्फोट के सभी आरोपियों को बरी करने वाले न्यायाधीश का इस्तीफा देना बहुत संदेहपूर्ण है और मैं न्यायाधीश के फैसले से आश्चर्यचकित हूं।’
अठारह मई 2007 को रिमोट कंट्रोल के जरिए 400 साल से ज्यादा पुरानी मस्जिद में जुमे की नमाज के दौरान शक्तिशाली विस्फोट को अंजाम दिया गया था। इसमें नौ लोगों की मौत हो गई थी और 58 अन्य घायल हुए थे। असीमानंद के वकील जेपी शर्मा के अनुसार, एनआइए मामलों के लिए विशेष न्यायाधीश के रवींद्र रेड्डी ने कहा कि अभियोजन (एनआइए) किसी भी आरोपी के खिलाफ एक भी आरोप साबित नहीं कर सका, इसलिए सभी को बरी किया जाता है। न्यायाधीश ने कड़ी सुरक्षा के बीच फैसला सुनाया। कथित ‘हिंदू आतंक’ के बहुचर्चित मामले में फैसला सुनाए जाने के दौरान अदालत कक्ष में मीडिया के प्रवेश पर रोक लगा दी गई थी।
एक वरिष्ठ न्यायिक अधिकारी ने बताया कि न्यायाधीश रेड्डी ने मेट्रोपोलिटन सत्र न्यायाधीश को इस्तीफा भेजा… उन्होंने निजी आधार का हवाला दिया है और इसका मक्का मस्जिद विस्फोट मामले के फैसले से कोई लेना देना नहीं है। अधिकारी ने कहा कि ऐसा लगता है कि रेड्डी ने इस्तीफा देने का फैसला कुछ समय पहले ही कर लिया था। असीमानंद के अलावा देवेंद्र गुप्ता, लोकेश शर्मा, भरत मोहनलाल रतेश्वर उर्फ भरत भाई और राजेंद्र चौधरी को भी बरी किया गया है।
यद्यपि इस मामले में 10 आरोपी थे, लेकिन उनमें से सिर्फ पांच के खिलाफ ही मुकदमा चलाया गया। दो अन्य आरोपी संदीप वी डांगे और रामचंद्र कलसांगरा फरार हैं जबकि सुनील जोशी की हत्या कर दी गई। दो अन्य के खिलाफ जांच चल रही है। बम विस्फोट मस्जिद के वजूखाना के पास हुआ था जब नमाजी वहां वजू कर रहे थे। बाद में दो और आइईडी पाए गए थे, जिसे पुलिस ने निष्क्रिय कर दिया था। इस घटना के विरोध में हिंसक प्रदर्शन और दंगे हुए थे। इसके बाद पुलिस कार्रवाई में पांच लोग और मारे गए थे। एक मृतक के परिजनों ने कहा कि फैसले को चुनौती दी जानी चाहिए जबकि एनआइए ने कहा कि वह फैसले की प्रति मिलने के बाद आगे की कार्रवाई पर विचार करेगी।
शर्मा के अनुसार अदालत ने दस्तावेजों और रिकॉर्ड में पेश सामग्री का परीक्षण करने के बाद पाया कि आरोप टिकने लायक नहीं थे। उन्होंने कहा कि यह पूरा मामला स्वामी असीमानंद के इकबालिया बयान पर आधारित था। शुरूआत से हम अदालत से कह रहे थे कि यह इकबालिया बयान नहीं है। उन्होंने कहा कि बचाव पक्ष ने दलील दी कि कथित इकबालिया बयान स्वामी असीमानंद से जबरन लिया गया ताकि ‘भगवा आतंक’ की थ्योरी गढ़ी जा सके। शर्मा के अनुसार अदालत ने कहा कि असीमानंद का इकबालिया बयान स्वैच्छिक नहीं था। उन्होंने कहा कि सीबीआइ ने स्वामी असीमानंद का इकबालिया बयान दिल्ली में लिया था, जब दिसंबर 2010 में वह पुलिस हिरासत में थे।
शर्मा ने दावा किया कि सीबीआइ ने जानबूझ कर आरोपी को फंसाया ताकि ‘संत समाज’ और आरएसएस की छवि धूमिल की जा सके। आरोपी किसी समय में आरएसएस से जुड़े हुए थे। उन्होंने दावा कि किसी भी आरोपी के पास से दोष साबित करने लायक सामग्री नहीं बरामद की गई और असीमानंद के ‘इकबालिया बयान’ की पुष्टि नहीं की गई।