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पंजाब केसरी को 155वीं जयंती पर श्रद्धाजंलि

By Dabangdunia News Service | Publish Date: Jan 28 2020 11:16AM | Updated Date: Jan 28 2020 11:17AM
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जौनपुर। स्वतंत्रता संर्ग्राम के महान क्रांतिकारी एवं बलिदान की प्रतिमूर्ति पंजाब केसरी लाला लाजपत राय को मंगलवार को उनकी 155वीं जयंती पर श्रद्धासुमन अर्पित किये गये। जिले के सरावां गांव में स्थित सहीद लाल बहादुर गुप्त स्मारक पर हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी और लक्ष्मीबाई ब्रिगेड के कार्यकर्ताओं ने शहीद स्मारक पर मोमबत्ती एवं अगरबत्ती जालाया और लालाजी के व्यक्तित्व और कृतित्व पर प्रकाश डाला और उन्हें अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की।
 
लक्षमीबाई ब्रिगेड की अध्यक्ष मंजीत कौर ने कहा कि लाला लाजपत राय का जन्म 28 जनवरी 1865 को पंजाब के मोगा जिले में हुआ था । इनके पिता का नाम लाला राधा कृष्ण अग्रवाल था ,ये पेशे से अध्यापक और उर्दू के लेखक थे। उन्होने वकालत की पढ़ाई पूरी कर हिसार और लाहौर में वकालत शुरू की। वे देश मे स्वावलम्बन से स्वराज लाना चाहते थे। देश् में 1899 में आये अकाल में उन्होंने पीड़ितों की तन,मन और धन से सेवा की। लाला लाजपत राय ने अपना सर्वोच्च बलिदान उस समय दिया ,जब साइमन कमीशन भारत आया था।
 
30 अक्टूबर 1928 को इंग्लैंड के प्रसिद्ध वकील सर जान साइमन की अध्यक्षता में सात सदस्यीय आयोग लाहौर आया और उसके सभी सदस्य अंग्रेज थे । उस समय पूरे भारत मे साइमन कमीशन का विरोध हो रहा था। लालाजी ने साइमन कमीशन का विरोध करते हुए नारा दिया कि साइमन कमीशन वापस जाओ ,तो इसके जबाब में अंग्रेजो ने लालाजी पर जमकर लाठी चार्ज किया , इसके जबाब में लालाजी ने कहा था कि मेरे शरीर पर लगी एक-एक लाठी अंग्रेजी साम्राज्य के लिए कफन साबित होगी।
 
कौर ने कहा कि लालाजी ने उस समय अंग्रेजी साम्राज्य के ताबूत के कील के रूप में उधम सिंह और भगत सिंह को तैयार कर दिया था। देश की आज़ादी की लड़ाई लड़ते - लड़ते 17 नवम्बर 1928 को लालाजी इस संसार को छोड़कर चले गए । लालाजी के देहांत के बाद उनके उपर  कातिलाना हमला करने वाले अधिक समय तक जिंदा नही रह सके । महान क्रांतिकारी राजगुरु ने 17 दिसम्बर 1928 को अंग्रेज पुलिस अफसर सांडर्स को मार डाला था ।
 
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