नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 के अधिकांश प्रावधानों को निष्प्रभावी करने के बाद संचार सहित विभिन्न सेवाओं पर लगाये गये प्रतिबंधों के खिलाफ दायर याचिकाओं पर शुक्रवार को फैसला सुना सकता है। न्यायमूर्ति एन वी रमन, न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति सुभाष रेड्डी की पीठ ने सभी संबद्ध पक्षों की विस्तृत दलीलें सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था। केंद्र सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दलीलें पेश करते हुए कहा था कि राज्य में शांति बहाली के लिए पाबंदियां लगाई गई थी। गौरतलब है कि जम्मू-कश्मीर में पांच अगस्त से लगाई गई पाबंदियों के खिलाफ कश्मीर टाइम्स की सम्पादक अनुराधा भसीन, कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद और कुछ हस्तक्षेपकर्ताओं की ओर से याचिकाएं दायर की गई थी।
आजाद की तरफ से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने अपनी दलील पेश करते हुए कहा था, धारा 144 में राष्ट्रीय सुरक्षा का जिक्र नहीं है। आप सिर्फ ऐसे नहीं कह सकते कि राष्ट्रीय आपात स्थिति है। सरकार को इसके लिए प्रमाण देना होगा।’’ उन्होंने कहा था कि नेशनल इमरजेंसी की भी न्यायिक समीक्षा की जा सकती है। क्या सरकार उस आदेश को दिखा सकती है, जिसके तहत उसने धारा 144 को हटाया है। उन्होंने कहा था, सरकार कह रही है कि हमने स्कूल खोला हुआ है, लेकिन क्या अभिभावक अपने बच्चों को स्कूल भेजेंगे। कश्मीर में कारोबार, स्कूल, किसान और पर्यटन प्रभावित है। ऐसे में शीर्ष अदालत को राष्ट्रीय सुरक्षा और जीवन जीने के अधिकार में तुलना करना होगा। सिब्बल ने कहा था कि तकनीक के सहारे अगर कोई गड़बड़ी कर सकता है, तो इसका मतलब यह नहीं होता कि आप इंटरनेट की सेवा बंद कर देंगे। गौरतलब है कि मेहता ने दलील दी थी कि इंटरनेट का इस्तेमाल आतंकियों द्वारा किया जा रहा है। राज्य में अनुच्छेद 370 और 35ए को निष्प्रभावी किए जाने के फैसले की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर संविधान पीठ अलग से सुनवाई कर रही है।