नई दिल्ली। अर्द्धसैनिक बलों के लिए अलग से सेवा नियम एवं शर्तें बनाने तथा उनके योगदान को सेना के योगदान के बराबर सम्मान देने की आज लोकसभा में मांग की गयी। कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी ने शून्यकाल में यह मुद्दा उठाते हुए कहा कि देश की 15 हजार किलोमीटर जÞमीनी सीमा और करीब साढ़े सात हजार किलोमीटर की तटीय सीमा है और सीमाओं की सुरक्षा से लेकर देश में नक्सल प्रभावित क्षेत्र हो या आतंकवाद या उग्रवाद ग्रस्त अशांत क्षेत्र, हर जगह अर्द्धसैन्य बल दिखायी देते हैं और देश की सुरक्षा के लिए बलिदान देते हैं।
चौधरी ने कहा कि अर्द्धसैन्य बलों को केन्द्रीय सिविल सेवा नियमों के तहत रखा गया है जिसमें आठ घंटे की ड्यूटी का प्रावधान है लेकिन अर्द्धसैन्य बलों के जवानों को 16 से 20 घंटे की ड्यूटी करनी पड़ती है। उन्होंने कहा कि अर्द्धसैन्य बलों के बलिदान को सेना के बलिदान से कम नहीं आंका जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि 2016 में सरकार ने आश्वासन दिया था कि अर्द्धसैन्य बलों को सेना के बराबर सुविधाएं दी जाएंगी और सेवा के अन्य प्रावधान भी उसी के अनुरूप किये जाएंगे।
चौधरी ने मांग की कि अर्द्धसैन्य बलों के लिए अलग से सेवा नियम बनाये जायें। इन बलों के कर्मियों को सैनिकों की भांति वन रैंक वन पेंशन दी जाये। उनकी कैंटीन में वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) पर 50 प्रतिशत की छूट दी जाये। भाजपा की किरण खेर ने 1965 और 1971 के युद्ध में भाग लेने के लिए आपात स्थिति में भर्ती किये गये हजारों सैनिकों की व्यथा उठायी। उन्होंने मांग की कि ऐसे सैनिकों को एक समान 30 हजार रुपए की पेंशन की जानी चाहिए।