नई दिल्ली। गृहमंत्री अमित शाह ने कहा है कि ‘नागरिकता (संशोधन) विधेयक 2019’ धर्म के आधार पर प्रताड़ति लोगों तथा वर्षों से नागरिक अधिकार से वंचित और नरक जैसा जीवन यापन कर रहे लोगों को सम्मान देने वाला है। शाह ने सोमवार को लोकसभा में विधेयक पर चर्चा शुरू होने से पहले कहा कि विविधता हमारा मंत्र है और सहिष्णुता हमारा गुण है। इसी मंत्र और इसी गुण से प्रभावित होकर सरकार धार्मिकरूप से उत्पीड़ति लोगों को नागरिकता का अधिकार देने वाला विधेयक लेकर आयी है।
विधेयक के तहत 31 दिसम्बर 2014 तक देश में आए धार्मिक आधार पर प्रताड़ति होकर आए लोगों को यह विधेयक नागरिकता का अधिकार देता है। उन्होंने कहा कि सदन के सभी सदस्यों का आवेदन किया कि वे विधेयक के खिलाफ प्रचार करने की बजाय यह प्रचारित करें कि विधेयक में धार्मिक आधार पर पाकिस्तान, बंगलादेश तथा अफगानिस्तान में प्रताड़ति नागरिकों को यह विधेयक नागरिकता का अधिकार देता है और सुनिश्चित करता है कि जिस दिन से वे भारत में प्रवेश किए हैं उसी दिन से वह भारत का नागरिक हो गया है।
गृहमंत्री ने कहा कि विधेयक में भेदभाव नहीं किया गया है। इस विधेयक पर पार्टी की विचारधारा से उठकर विचार किया जाना चाहिए और जिन लोगों को कोई अधिकार नहीं उनके हित में लाए गये विधेयक में राजनीतिक करने की बजाए सबको इसका सम्मान करना चाहिए। उन्होंने विधेयक को पूर्वोत्तर के सभी नागरिकों के हितों को साधने वाला बताया और कहा कि यह विधेयक अरुणाचल प्रदेश में लागू नहीं होता है क्योंकि वहां बंगाल ईस्ट फ्रंटियल अधिनियम लागू है। इसी तरह का संरक्षण मिजोरम और नागालैंड में इनर लाइन परमिट(आईएलपी) है और मेघालय छठी सूची के तहत आता है।
मणिपुर के लिए सरकार जल्द ही आईएलपी लाने की तैयारी कर रही है क्योंकि यह वहां के लोगों की लम्बी मांग है। गृहमंत्री ने कहा कि इस विधेयक के प्रावधान असम, मेघालय, मिजोरम या त्रिपरुा के आदिवासी क्षेत्रों लागू नहीं होगा। ये सभी क्षेत्र छठी सूची के अंतर्गत आते हैं। उन्होंने कहा कि यह विधेयक पाकिस्तान, अफगानिस्तान तथा बंगलादेश में धर्म के आधार पर प्रताडित हिंदू, सिख, बौध, जैन, पारसी तथा क्रिश्चियन को नागरिकाता का अधिकार देता है।