नई दिल्ली। देश में लाखों व्यापारिक विवादों के समाधान के लिए राजधानी में अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता केन्द्र के गठन से संबंधित विधेयक ‘नयी दिल्ली अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता केन्द्र विधेयक 2019 ’ को आज राज्यसभा ने ध्वनिमत से पारित कर दिया। लोकसभा इस विधेयक को पिछले सप्ताह पारित कर चुकी है जिससे इस पर संसद की मुहर लग गयी। सदन ने मध्यस्थता एवं सुलह (संशोधन) विधेयक 2019 को भी मंजूरी दे दी। यह विधेयक 16 वीं लोकसभा में पारित किया गया था लेकिन कार्यकाल पूरा होने पर लोकसभा के भंग होने के कारण यह निरस्त हो गया था। अब राज्यसभा की मंजूरी मिलने के बाद यह लोकसभा में पेश किया जायेगा। इस विधेयक में भारतीय मध्यस्थता परिषद के गठन का प्रावधान है जो मध्यस्थतकारों के एक पैनल का गठन करेगा।
विधि मंत्री रविशंकर प्रसाद ने इन दोनों विधेयकों पर एक साथ चली साढे चारे घंटे की चर्चा का जवाब देते हुए विपक्षी सदस्यों की इन आशंकाओं को निराधार बताया कि सरकार मध्यस्थता केन्द्र और मध्यस्थता परिषद के गठन में कोई गड़बड़ी करेगी। उन्होंने कहा कि देश में घरेलु और विदेशी पूंजी निवेश को निर्बाध तरीके से जारी रखने के लिए व्यापारिक विवादों को समय पर सुलझाया जाना जरूरी है और इसके लिए ही इन विधायी संस्थाओं का गठन किया जा रहा है। प्रसाद ने कहा कि ‘नयी दिल्ली अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता केन्द्र विधेयक 2019 ’ गत दो मार्च को जारी अध्यादेश के स्थान पर लाया गया है। इस की स्थापना होने से अंतर्राष्ट्रीय कारोबारी विवादों को देश में ही सुलझाया जा सकेगा। अभी केवल मुंबई में ही इस तरह का मध्यस्थता केन्द्र काम कर रहा है।
उन्होंने कहा कि सिंगापुर और हांगकांग में भी सरकार ने ही मध्यस्थता केन्द्र की स्थापना की है इसलिए देश में इस तरह के केन्द्र की स्थापना को लेकर आशंका नहीं की जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि मध्यस्थता एवं सुलह (संशोधन) विधेयक के तहत उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय को यह अधिकार होगा कि वह समय समय पर मध्यस्थता संस्थानों का गठन करेंगे और मध्यस्थतकारों के पैनल का गठन करेंगे। भारतीय मध्यस्थता परिषद विवादों के समाधान के अलावा प्रशिक्षण देने के साथ कार्यशालाओं का भी आयोजन करेगी। एक वर्ष के निर्धारित समय में मामलों का निपटारा नहीं होने पर दंड का भी प्रावधान किया गया है और समय से पहले समाधान पर प्रोत्साहन राशि भी दी जायेगी।