नैनीताल। उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने समाज कल्याण विभाग के तहत संचालित करोड़ों रुपये के अनुसूचित जाति-जनजाति छात्रवृत्ति घोटाले की जांच का दायरा शुक्रवार को बढ़ा दिया। घोटाले की जांच की जद में अब राज्य के सभी 13 जिले आ गये हैं। अदालत ने मामले की जांच कर रही विशेष जांच दल (एसआईटी) का दायरा भी बढ़ा दिया है। इसके साथ ही न्यायालय ने घोटाले के आरोपी और समाज कल्याण विभाग के अतिरिक्त निदेशक गीताराम नौटियाल की गिरफ्तारी के मामले में सरकार को अपना पक्ष स्पष्ट करने को कहा है। मुख्य न्यायाधीश रमेश रंगनाथन और न्यायमूर्ति रमेश चंद्र खुल्बे की युगलपीठ ने शुक्रवार को मामले की सुनवाई करते हुए एसआईटी और मामले की जांच का दायरा बढ़ाने का आदेश दिया।
न्यायालय ने राज्य के 11 जिलों में जांच को फैलाते हुए इसकी जांच का जिम्मा पुलिस महानिरीक्षक संजय गुज्यांल की अगुवाई वाली एसआईटी को सौंपी है। इससे पहले अदालत ने मामले की जांच टीएस मंजूनाथ की अगुवाई वाली एसआईटी को दी थी। अब मंजूनाथ की अगुवाई वाली एसआईटी देहरादून और हरिद्वार जिलों के मामलों की ही जांच करेगी। याचिकाकर्ता के वकील सी के शर्मा ने कहा कि सुनवाई के दौरान सरकार की ओर अदालत के समक्ष अनुसूचित जाति/जनजाति आयोग की ओर से जारी एक दस्तावेज पेश किया गया जिसमें छात्रवृत्ति घोटाले के कथित आरोपी एवं समाज कल्याण विभाग के अतिरिक्त निदेशक गीताराम नौटियाल की गिरफ्तारी पर एक सप्ताह तक अस्थायी रोक लगाने की बात कही गयी है।
शर्मा ने कहा कि अदालत ने इस मामले में सरकार को शपथपत्र के माध्यम से अपना पक्ष स्पष्ट करने के निर्देश दिये हैं। इस महीने की शुरूआत में नौटियाल समेत चार अधिकारियों को एसआईटी की ओर से पूछताछ के लिये बुलाया गया था। कथित आरोपी नौटियाल एसआईटी के समक्ष पेश नहीं हुए। इसके बाद एसआईटी की ओर से नौटियाल की तलाशी में उनके आवास और अन्य जगहों पर छापे मारे गये लेकिन एसआईटी गीताराम नौटियाल को तलाशने में असफल रही। इसके बाद एसआईटी की ओर से नौटियाल को पकड़ने के लिये अदालत से गैर जमानती वारंट प्राप्त करने का निर्णय लिया गया। एसआईटी अभी तक घोटाले में शामिल 12 आरोपियों को गिरफ्तार कर चुकी है।
इनमें हरिद्वार जिले के पूर्व समाज कल्याण अधिकारी समेत कम से कम आठ कालेजों के अधिकारी भी शामिल हैं। इन पर कथित रूप से अनुसूचित जाति/जनजाति छात्रों की छात्रवृत्ति घोटाले के लगभग 87 करोड़ रुपये के गबन का आरोप है। इससे पहले सरकार ने इस मामले की जांच के लिये आईपीएस अधिकारी गुज्यांल की अगुवाई में एक एसआईटी टीम का गठन किया था लेकिन अदालत ने इसी साल जनवरी में सरकार के इस फैसले को खारिज कर दिया था तथा मंजूनाथ की अगुवाई वाली एसआईटी को मामले की जांच का जिम्मा सौंप दिया था। इस प्रकरण को देहरादून निवासी रवीन्द्र जुगरान की ओर से एक जनहित याचिका के माध्यम से चुनौती दी गयी है। याचिकाकर्ता की ओर से वर्ष 2003 से 2016 के मध्य हुए इस घोटाले में लगभग 500 करोड़ की वित्तीय अनियमितता का आरोप लगाया गया है। याचिकाकर्ता की ओर से इस प्रकरण की जांच केन्द्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) से कराने की भी मांग की गयी है।