नई दिल्ली। भारतीय आयुर्विज्ञान परिषद अधिनियम, 1956 में संशोधन करने वाले विधेयक पर बृहस्पतिवार को संसद की मुहर लग गयी। राज्यसभा ने भोजनावकाश के बाद लगभग तीन घंटे की बहस के बाद इस विधेयक को ध्वनिमत से पारित कर दिया और सदन ने तृणमूल कांग्रेस के शांतनु सेन के संशोधन के प्रस्ताव को खारिज कर दिया। लोकसभा में यह विधेयक पहले ही ध्वनिमत से पारित हो चुका है। यह विधेयक 21 फरवरी 2019 को जारी भारतीय आयुर्विज्ञान परिषद् (संशोधन) दूसरा अध्यादेश, 2019 के स्थान पर लाया गया है। इससे पहले मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के इलामारम करीम ने भारतीय आयुर्विज्ञान परिषद् (संशोधन) दूसरा अध्यादेश 2019 को अनुमोदित नहीं करने का प्रस्ताव रखा जिससे सदन ने ध्वनिमत से खारिज कर दिया। इसके तहत भारतीय आयुर्विज्ञान परिषद् (एमसीआई) के कार्य निर्वहन के लिए गठित संचालन मंडल के सदस्यों की संख्या सात से बढ़ाकर 12 कर दी गयी है और कार्यकाल की अवधि 2020 की दी गयी है।
चर्चा का जवाब देते हुए स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री डॉ. हर्षवर्द्धन ने कहा कि एमसीआई में व्याप्त भ्रष्टाचार को देखते हुये उसके प्रशासकों को हटाकर संचालन मंडल के गठन की जरूरत पड़ी। उन्होंने कहा कि उच्चतम न्यायालय द्वारा गठित दूसरी निगरानी समिति के इस्तीफा देने के बाद एक शून्यता की स्थिति पैदा हो गई थी। उसे भरने के लिए संचालन मंडल बनाया गया। हर्षवर्धन ने कहा कि एमसीआई की स्वायत्तता समाप्त करने की सरकार की कोई योजना नहीं है। सरकार का उद्देश्य बेहतरीन स्वास्थ्य सुविधाएँ देना है। इसके लिए सरकार जल्द ही राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग विधेयक संसद में पेश करेगी। उन्होंने कहा कि संचालन मंडल ने स्रातक स्तर पर सीटों की संख्या 60,680 से बढ़ाकर 75,548 कर दी है। इस प्रकार करीब 15,000 अतिरिक्त सीटें जोड़ी गयी हैं। कुल 37 चिकित्सा महाविद्यालयों को मंजूरी दी गयी, जिनमें 25 सरकारी और 12 निजी महाविद्यालय हैं।