नई दिल्ली। जापान के एक शोध में वाई फाई राउटर से निकलने वाले माइल्ड इलेक्ट्रो मैग्नेटिक रेडिएशन से पुरुषों में शुक्राणुओं की गतिशीलता पर पड़ने वाले गंभीर खतरे के बारे में अगाह किये जाने के बीच वैज्ञानिकों ने चिंता जतायी है कि 5जी नेटवर्क से ब्रेन ट्यूमर जैसी गंभीर बीमारियों का खतरा बढ़ जायेगा। मुंबई आईआईटी के प्रोफेसर गिरीश कुमार ने यूनीवार्ता से कहा, ‘‘जब वाई फाई राउटर के इलेक्ट्रो मैग्नेटिक रेडिएशन से शुक्राणुओं की सक्रियता प्रभावित हो सकती है तो ‘उच्च शक्ति सम्पन्न’ 5 जी नेटवर्क के कारण लोगों के ब्रेन ट्यूमर समेत कई तरह के गंभीर रोगों के जद में आने की आशंका के बारे आसानी से अंदाज लगाया जा सकता हैं।’’
प्रोफेसर जापान के वैज्ञानिकों की एक टीम ने अपने ताजा शोध में साबित किया है कि न केवल मोबाइल हैंडसेट बल्कि वाई फाई राउटर से निकलने वाला इलेक्ट्रो मैग्नेटिक रेडिएशन भी पुरुषों में शुक्राणुओं की गतिशीलता में कमी ला रहा है वजह बन रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि 21वीं सदी में कैंसर और दिल की बीमारियों के बाद पुरुषों में शुक्राणुओं की निष्क्रियता सबसे बड़ी समस्या होगी।
जापान के अनुसंधानकर्ता कुमिको नकाता की टीम के अनुसार पुरुषों के शुक्राणुओं के नमूनों को तीन स्थानों -वाई फाई वाले क्षेत्र में , वाई फाई को ढ़क कर रखे हुए स्थान में और वाईफाई की पहुंच से दूर वाले क्षेत्र में जांच के लिए रखा गया। एक घंटा तक तीनों स्थानों पर रखे गये शुक्राणुओं में किसी तरह का बदलाव नहीं था लेकिन दो घंटे के बाद अंतर देखने को मिला। उन्होंने कहा, ‘‘शील्ड करके रखे गये शुक्राणुओं की गतिशीलता का प्रतिशत 44.9, वाई फाई वाले क्षेत्र रखे हुए शुक्राणुओं का 26.4 प्रतिशत और जिन्हें इसकी पहुंच से दूर रखा गया था उनका दर 53.3 प्रतिशत पाया गया।’’ अनुसंधानकर्ताओं के अनुसार, 24 घंटे के बाद शुक्राणुओं में बड़ा अंतर देखा गया।
जिन्हें वाई फाई की पहुंच से दूर रखा गया था उन शुक्राणुओं के खत्म होने का प्रतिशत 8.4 ,जिन्हें इसके क्षेत्र में रखा गया उनका दर 23.3 और जिन्हें शील्ड किये गये वाई फाई के जोन में रखा गया उनका प्रतिशत 18.2 प्रतिशत रहा। पिछले दो दशक से इलेक्ट्रो मैग्नेटिक रेडिएशन के खिलाफ अपनी टीम के साथ जंग लड़ने वाले एवं इस विषय पर कई वैश्विक मंचों पर शोध पत्र प्रस्तुत करने वाले प्रोफेसर कुमार ने कहा,‘‘ मोबाइल और इसके टावरों से निकलने वाले खतरनाक रेडिएशन का मनुष्यों से लेकर प्रकृति तक पर पड़ने वाले भयावह कुप्रभाव को नजर अंदाज करना खुद के , समाज और विश्व के प्रति ‘बेवफाई’ होगी।
हम पहले टू जी, फिर इससे शक्तिशाली थ्री जी और उसके बाद इससे भी अधिक ‘शक्ति संपन्न’ 4 जी वेटवर्क के साये में जी रहे हैं। अभी 4 जी नेटवर्क के प्रभाव के कारण ब्रेनट्यूमर समेत कई प्रकार के कैंसर के मामले सामने आ ही रहे हैं और अब ‘घातक हथियारों’ से लैस 5 जी नेटवर्क की चर्चा शुरु हो गयी है। प्रोफेसर कुमार ने कहा,‘‘ हमारे यहां 5 जी हैंडसेट और टेलीकॉम उपकरण बनाने वाले मैनुफैक्चर्स नहीं है लेकिन इसे शुरू करने की बात की जा रही है। बड़ी आबादी वाला देश देखकर विदेशी मैनुफैक्चरर्स भारत में 5 जी के साथ गाढ़ी कमाई का सपना देख रहे हैं।
हमारी सरकार भी करीब छह लाख करोड़ रूपये के मूल्य के टेलीकॉम स्पेक्ट्रम की अबतक की सबसे बड़ी निलामी की योजना बना रही है जबकि विश्वभर के एक सौ से अधिक वैज्ञानिक 5 जी नेटवर्क के खतरे को लेकर कड़ी चेतावनी जारी कर चुके हैं।’’ उन्होंने कहा,‘‘ लोग तेज नेटवर्क पसंद करेंगे लेकिन वे , मनुष्य ,पशु-पक्षी ,पेड़-पैधे और पर्यावरण के सेहत की कीमत पर यह सुविधा कतई नहीं चाहेंगे।’’ प्रोफेसर कुमार ने कहा कि मोबाइल टावर का नेटवर्क अपने साथ इलेक्ट्रो मैग्नेटिक रेडिएशन लेकर आता है।
इसके जद में रहने वाले लोगो को कैंसर, ब्रेन ट्यूमर, हार्ट अटैक, स्किन रोग एवं अन्य खतरनाक बीमारियों होने की आशंका बढ़ जाती है। टावर से निकलने वाली इलेक्ट्रो मैग्नेटिक रेडिएशन कोशिकाओं को धीरे-धीरे नष्ट कर देता है। टावर के खतरनाक रेडिएशन में 24 घंटे रहने वालो की सर्वप्रथम रोग प्रतिरोधक क्षमता धीरे-धीरे नष्ट होने लगती है। इलेक्ट्रो मैग्नेटिक रेडिएशन बच्चों, बूढों और गर्भवती महिलाओं को सबसे अधिक प्रभावित करता है। ’’ उनका कहना है कि सरकार को इस खतरनाक रेडिएशन के मामले को गंभीरता से लेना चाहिये। हानिकारक रेडिएशन का जीव -जंतुओं, पशु पक्षी, पेड़ पौधे, हिमालयी प्रवासी पक्षियों पर बुरा असर पड़ रहा है।
शोध में देखा गया है कि रेडिएशन से वन्य जीवों के हार्मोनल बैलेंस पर हानिकारक असर होता है। पक्षियों की प्रजनन शक्ति के अलावा इनके नर्वस सिस्टम पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। गौरैया, मैना, तोता और उच्च हिमालयी पक्षियों पर सबसे अधिक खतरा मंडरा रहा है। कई पक्षी अब लुप्त होने के कगार पर हैं। यह पर्यावरण के लिए खरनाक संकेत हैं। गौरैया की संख्या बहुत ही कम होने का कारण भी मोबाइल टावर ही माना जा रहा है।