सुधीर शिंदे-
इंदौर। इन दिनों एमवाय अस्पताल की पूरी व्यवस्थाएं वेंटिलेटर पर है और वहां लापरवाही के कारण एक के बाद एक बड़े हादसे हो रहे हैं। वहीं शहर में स्वास्थ्य अमले की मैदानी सक्रियता नहीं होने से स्वाइन फ्लू और आर्थो वायरस के मरीज बीमारी से संघर्ष कर रहे हैं। एमवायएच, मेडिकल कॉलेज और स्वास्थ्य विभाग सालों से प्रभारी अधिकारियों के भरोसे चल रहे हैं। इन घटनाओं के बाद अब स्थायी अधिकारी पर भी सवाल उठने लगे हैं।
न डॉक्टर रुचि ले रहे हैं न मैदानी अफसर
स्वास्थ्य योजनाओं को बेहतर बनाने के लिए प्रदेश सरकार ने भले ही दर्जनभर से ज्यादा योजनाएं शुरू कर रखी हैं, लेकिन इंदौर जैसे बड़े शहर के चिकित्सा शिक्षा और स्वास्थ्य विभाग सालों से प्रभारी अधिकारियों के भरोसे होने की वजह से शासन की योजनाएं कागजों पर ही दम तोड़ रही हैं। एमजीएम मेडिकल कॉलेज में डीन डॉ. शरद थोरा से लेकर एमवायएच अधीक्षक डॉ. वीएस पाल और स्वास्थ्य विभाग के संयुक्त संचालक से सिविल सर्जन तक तमाम अफसर बतौर प्रभारी के तौर पर जिम्मेदारी संभाल रहे हैं। शासन ने इन प्रभारी और जूनियर अधिकारियों को महत्वपूर्ण जिम्मेदारी तो सौंप दी, लेकिन इनके आदेश पर सीनियर डॉक्टर अमल करते हैं न मैदानी अफसर सक्रिय हो रहे हैं। यही कारण है कि गंभीर बीमारियों की रोकथाम के लिए कभी भी जमीनी उपाय नहीं हुए।
मध्यप्रदेश में 32 सीएमएचओ प्रभारी
स्वास्थ्य संचालनालय स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर कितना गंभीर है, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि प्रदेश के 32 जिलों में एक दशक से ज्यादा समय से स्थायी सीएमएचओ नहीं है। प्रभारी सीएमएचओ होने की वजह से वे अपने काम को गंभीरता से नहीं ले पाते।
क्षेत्रीय संयुक्त संचालक स्वास्थ्य
डॉ. शरद पंडित के सेवानिवृत्त होने के बाद कुछ महीने पहले ही एक पूर्व मंत्री की रिश्तेदार डॉ. लक्ष्मी बघेल को संभाग की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी गई। जबकि संभाग में उनसे कई सीनियर डॉक्टरों की सूची काफी लंबी थी।
सीएमचएओ
सीएमएचओ के पद पर पिछले तीन सालों से स्थायी नियुक्ति नहीं हुई। करीब एक साल पहले डॉ. एचएन नायक को जिले की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। डॉ. नायक को अनियमिताओं के चलते बेटमा में पोस्टिंग के दौरान निलंबित कर दिया था। कुछ साल बाहर रहने के बाद उन्होंने इस पद पर वापसी की। डॉ. नायक के काम में रुचि नहीं लेने से शहर में इतनी बीमारी फैल गई, लेकिन न तो कोई बड़ा अभियान शुरू किया और ना ही निजी अस्पतालों की मनमानी और फर्जी डॉक्टरों को इलाज से रोकने में कामयाब हो सके।
सिविल सर्जन
जिला अस्पतालों में ये पद प्रभारी के तौर पर सीनियर डॉक्टर को ही सौंपे जाने का नियम है, लेकिन डेढ़ साल से इस पद को लेकर डॉक्टरों में घमासान मचा हुआ है। इसकी वजह से पांच से सात महीने में ही डॉक्टरों का बदलाव हो रहा है।
एमजीएम मेडिकल कॉलेज
31 जुलाई 2016 को स्थायी डीन डॉ. एमके राठौर सेवानिवृत्त हुए थे। इसके बाद डॉ. आरके माथुर को प्रभारी के तौर पर जिम्मेदारी सौंपी गई, लेकिन करीब पांच महीने बाद एमबीबीएस काउंसलिंग की गफलत के बाद शासन ने डॉ. शरद थोरा को प्रभारी डीन बना दिया। इस बीच डॉ. थोरा जहां विदेश यात्रा कर आए वहीं, अधिकांश समय बेटे के और खुद के निजी क्लिनिक तैयार करने में लगे रहते है।
एमवाय अस्पताल
2015 में डॉ. एडी भटनागर को अधीक्षक बनाया। कुछ महीने बाद ही आरक्षक भर्ती में ऊंचाई में हुई गफलत के बाद डॉ. रामगुलाम राजदान को प्रभारी अधीक्षक की जिम्मेदारी दे दी गई। इसी बीच मई 2016 में पीडियाट्रिक ओटी में हुई गैस लीकेज के कारण सरकार ने डॉ. वीएस पाल को प्रभारी बना दिया। डॉ. पाल एसोसिएट प्रोफेसर हैं और उसमें भी बेहद जूनियर।
कैंसर अस्पताल
डॉ. फकरुद्दीन के सेवानिवृत्ति होने के बाद डॉ. रमेश आर्य को कैंसर अस्पताल की जिम्मेदारी सौंपी गई, लेकिन उन्हें सिग्निचर अथॉरिटी तक नहीं दी। इस वजह से अस्पताल की कई व्यवस्थाएं प्रभावित हो रही हैं।