रफी मोहम्मद शेख-
इंदौर। इंदौर और अन्य स्थानों पर चिकनगुनिया का प्रकोप पिछले कई महीनों से चल रहा है। इस बीमारी में महीनों तक परेशानी हो रही है और व्यक्ति को उठने-बैठने से लेकर चलने-फिरने तक की समस्या आ रही है। देवी अहिल्या यूनिवर्सिटी की 30 नवंबर से शुरू हो रही परीक्षाओं में चिकनगुनिया से प्रभावित छात्रा का मामला सामने आया है। उसने बीमारी के कारण हाथ टेढ़े होने का हवाला देते हुए परीक्षा में लिखने के लिए रायटर मांगा है। यूनिवर्सिटी के नियमों में इस बीमारी का कोई उल्लेख नहीं है। अब यूनिवर्सिटी ने उससे डॉक्टर का सर्टिफिकेट मांगा है ताकि इस पर विचार किया जा सके। उधर, विशेषज्ञ डॉक्टर ऐसी समस्या को सही बता रहे हैं।
लिख ही नहीं पा रही
मंगलवार को डीन स्टूडेंट वेलफेयर डॉ. लक्ष्मीकांत त्रिपाठी के मोबाइल पर 30 नवंबर से शुरू हो रही परीक्षा के लिए बनाए गए एक परीक्षा सेंटर के केंद्राध्यक्ष का फोन आया। उन्होंने बिलकुल नई समस्या बताई, जिसका हल उनके पास नहीं था। केंद्राध्यक्ष ने बताया कि उनके पास एक छात्रा बैठी है जो परीक्षा में लिखने के लिए रायटर की मांग कर रही है। छात्रा के अनुसार उसे पिछले दिनों चिकनगुनिया हुआ है। इससे उसके हाथ-पैर सुन्न होकर टेढ़े-मेढ़े हो गए हैं। उसकी स्थिति यह है कि वह लिख ही नहीं पा रही हैं। इससे वह परीक्षा देने की स्थिति में नहीं है। इस कारण उसे रायटर की सुविधा दी जाना चाहिए। डीएसडब्ल्यू की केंद्राध्यक्ष की मांग का कोई जवाब नहीं दे पाए और उन्होंने उन्हें डॉक्टर का सर्टिफिकेट मंगवाने की बात कह यूनिवर्सिटी के अधिकारियों से बात करने को कहा है।
नियमों में कहीं उल्लेख नहीं
इसके बाद डॉ. त्रिपाठी ने यह समस्या कुलपति डॉ. नरेंद्र धाकड़ और परीक्षा नियंत्रक डॉ. अशेष तिवारी के समक्ष रखी। उन्हें भी इस समस्या का हल नहीं मिला। परीक्षा नियंत्रक ने जब यूनिवर्सिटी द्वारा परीक्षा में रायटर देने के लिए निश्चित नियम देखें तो वहां पर दृष्टिहीन, दृष्टिबाधित, विकलांग, पोलियो या सेरेब्रल पाल्सी से पीड़ित विद्यार्थी को ही यह सुविधा देने की बात लिखी गई है। इसमें भी डॉक्टर का सर्टिफिकेट होना जरूरी होता है और पीड़ित विद्यार्थी जिस क्लास की परीक्षा में बैठ रहा है उसका रायटर उससे निचली क्लॉस तक पढ़ा-लिखा ही होना चाहिए।
कमेटी में रखकर निर्णय
परीक्षा नियंत्रक डॉ. अशेष तिवारी के अनुसार इससे पहले भी चिकनगुनिया से पीड़ित कुछ अन्य विद्यार्थियों की तरफ से भी यह बात उठाई गई थी लेकिन इसका कोई नियम नहीं होने से रायटर देने पर विचार नहीं हो सका। कुलपति की उपस्थिति में यह निश्चित किया गया कि विद्यार्थी से डॉक्टर का सर्टिफिकेट मंगवाया जाए। उसके बाद परीक्षा कमेटी की बैठक में यह विषय रखकर इस पर विचार किया जाएगा कि ऐसे विद्यार्थियों को राहत दी जा सकती है या नहीं। फिलहाल यूनिवर्सिटी में नियम नहीं होने से केवल कुलपति स्तर से ही कोई तुरंत कोई निर्णय लिया जा सकता है। यह बीमारी नई है और नियम में बदलाव करना पड़ेगा।
तेजी से फैल रही बीमारी
इधर यह वास्तविकता है कि यह बीमारी तेजी से पिछले कई महीनों से पूरे क्षेत्र में फैल रही है। इससे ग्रसित व्यक्तियों की स्थिति काफी खराब है। विशेषज्ञों के अनुसार इस बीमारी का प्रभाव एक-दो दिन नहीं बल्कि कई महीनों तक रह सकता है। हाथ सुन्न होना, चलने-फिरने में तकलीफ होना, हाथ-पैर काम नहीं करना, उठने-बैठने में समस्या होना आदि इसके लक्षण है, जो मरीज और बीमारी के हिसाब से लंबे समय तक चल सकते हैं। उनके अनुसार अगर कोई ऐसा मरीज है तो डॉक्टर उसे सर्टिफाइड कर सकता है और उसे राहत दी जाना चाहिए।
छूट देना चाहिए..
चिकनगुनिया का प्रभाव एक-दो दिन नहीं बल्कि एक-दो साल तक भी रह सकता है। यह मरीज और उसकी बीमारी की स्थिति पर निर्भर करता है। अगर कोई इसका वास्तविक मरीज है तो उसे छूट दी जाना चाहिए।
- डॉ. संजय लोंढे, अध्यक्ष - इंदौर मेडिकल एसोसिएशन