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निगमायुक्त की सख्ती से लकड़ी माफियाओं में मचा हड़कंप

By Dabangdunia News Service | Publish Date: Nov 12 2017 4:57PM | Updated Date: Nov 12 2017 4:57PM
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-केपी सिंह
 
इंदौर। निगमायुक्त की सख्ती से लकड़ी माफियां बौखला गए हैं। यही कारण है कि अब निगम में ‘घुसपैठ’ नहीं कर पा रहे है। नगर निगम अब लाखों की कमाई हजारों क्विंटल लकड़ियां बेचकर करेगा। इस सख्ती से लकड़ी का अवैध कारोबार कर रहे माफियाओं में हड़कंप मचा है, क्योंकि उनकी कमाई मारी जा रही है। इनकी कमाई तो नगर निगम की लकड़ियों से होती थी, जिसके एवज में निगमकर्मियों को हजारों रुपए देकर लाखों की लकड़ी चुरा लेते थे। इस कारण सालों से निगम लकड़ियों की नीलामी नहीं कर पाया था। लकड़ी जमा होने से पहले ही उसका सौदा कर दिया जाता था, इसलिए निगम कमिश्नर मनीष सिंह ने सबसे पहले लकड़ी के काले कारोबार करने वाली जोड़ियों में सेंध लगाई और निगम में काम कर रहे भ्रष्टाचारियों को रवाना कर दिया। साथ ही चेतावनी दी कि अगर दोबारा आसपास भी दिखे तो एफआईआर दर्ज कराई जाएगी। इन लोगों के हटते ही लकड़ी माफियाओं की सेटिंग भी चौपट हो गई और एक सामाजिक कार्यकर्ता के साथ आंदोलन में शामिल होकर शहरहित की बात करने लगे। हालांकि एफआईआर के डर से वो ‘दड़बे’ में दुबक गए। 
 
सेटिंग से करते थे ‘खेल’
निगम उद्यान विभाग के कर्मचारी सेटिंग से पेड़ों की लकड़ी को ठिकाने लगा देते थे। ये लोग जहां भी पेड़ की छंटाई या कटाई करते, वहां ठेकेदार को बुलाकर लकड़ी गायब करवा देते हैं, जिसके एवज में इन्हें मोटी रकम मिलती है। इसके अलावा उद्यान से निकलने वाले लकड़ी या फिर घरों व चौराहा से पेड़ों की छटाई में निकलने वाली लकड़ी को भी स्टोर करने से पहले ही बाले-बाले सौदा कर देते हैं। इसमें बाकायदा निगम टीम जाती है और लकड़ियों को देखकर उसकी कीमत ठेकेदार से तय कर देती है। ये ठेकेदार लकड़ी उठाता है और बाद में निगमकर्मियों को पैसा उपलब्ध कराता है। ये ठेकेदार अक्सर निगम की आड़ लेकर पेड़ों की लकड़ी उठाकर ले जाता है। यहां तक निगम के वाहनों से लकड़ी उठाकर ठेकेदार के गोडाउन तक सुरक्षित पहुंचा दी जाती है।
 
व्यवस्था में बदलाव 
सालों से उद्यान विभाग में जमे लोगों की लिस्ट तैयार कर उन्हें शिकायतों के आधार पर हटाना शुरू कर दिया। पुरानी व्यवस्था के तहत एक दरोगा पूरे शहर में पेड़ों की छंटाई  से कटाई और लकड़ियों को ठिकाने लगा देता था। उसे हटाने के साथ ही थ्री लेयर निगम कमिश्नर द्वारा तैयार कर दी गई। इसमें तीनों कर्मचारियों को अलग-अलग दायित्व सौंपे गए। इसमें एक व्यक्ति निरीक्षणकर्ता का काम करेगा, जबकि दूसरा व्यक्ति पेड़ काटने का काम और तीसरा व्यक्ति परिवहन का काम। तीन स्तर पर व्यवस्था होने से लकड़ी चोरी पर अंकुश लग गया है। पहले ठंड में अलाव जलाने के लिए लकड़ियों पर लाखों रुपए खर्च होते थे, जो अब बच जाएंगे। इसके अलावा भोजन भंडारे में भी निगम की लकड़ियां उपलब्ध कराई जा रही है। साथ ही पार्षदों की मांग पर भी लकड़ी दी जा रही है।  
 
लकड़ी बेचने की तैयारी
शहर में हर साल हजार से डेढ़ हजार पेड़ कटते हैं। वहीं, कुछ पेड़ आंधी-तूफान व बारिश में उखड़ जाते हैं। हजारों पेड़ों की छंटाई  भी होती है। पहले इन लकड़ियों का हिसाब नहीं रखा जाता था अब पैनी नजर रखी जा रही है। सालभर में दो से तीन हजार क्विंटल लकड़ी नेहरू पार्क में जमा हो गई है, जिसे बेचने की तैयारी है।
 
नहीं है कोई हिसाब-किताब 
सड़क चौड़ीकरण में कई पेड़ काटे गए और कई बारिश के दौरान गिरे। कितने पेड़ गिरे और कितने काटे गए, इसका कोई लेखा-जोखा नहीं हैं। आंकड़ों के अनुसार 2001 से 2016 के बीच हजारों पेड़ काटे, जबकि सैकड़ों पेड़ गिरे जिन्हें बाले-बाले बेच दिया गया।
 
अलाव भी जलेंगे और बेचेंगे भी 
नेहरू पार्क में अब लकड़ी रखने की जगह कम पड़ने लगी है, इसलिए बेचने के लिए टेंडर जारी कर दिए हैं। लकड़ी रखने के मामले में कमिश्नर साहब से चर्चा हुई है कि पार्क में लकड़ी नहीं रखेंगे, क्योंकि इसका जीर्णोद्धार शुरू होने वाला है। लकड़ी रखने के लिए नया स्थान तलाश रहे हैं। पार्क से लकड़ी को हटाना भी जरूरी है, इसलिए टेंडर के माध्यम से बेचा जा रहा है। अलाव के लिए लकड़ी पहले से ही रख ली गई है, इसलिए बाहर से खरीदने की जरूरत नहीं पड़ेगी। 
- कैलाश जोशी, उपायुक्त, नगर निगम 

सख्ती की तो मिलने लगे नतीजे 
लकड़ियों को लेकर शिकायतें मिल रही थी, इसलिए सख्ती कर व्यवस्थाओं में परिवर्तन कर उपायुक्त जोशी को जिम्मेदारी सैपी। इन्हें स्पष्ट निर्देश दिए गए कि अगर कोई गड़बड़ी करता पाया जाए, तो तत्काल दंडात्मक कार्रवाई करें। यही कारण है कि अब लकड़ियों को बेचने का टेंडर जारी किया गया है। 
- मनीषसिंह, कमिश्नर, नगर निगम 

 

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