नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को मस्जिद के इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा न होने संबंधी इस्माइल फारुकी फैसले को संवैधानिक पीठ को भेजने के मुद्दे पर फैसला सुरक्षित रख लिया। मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने मस्जिद के इस्लाम के अनिवार्य हिस्सा न होने संबंधी मामले पर सुनवाई करते हुए फैसला सुरक्षित रखा। पीठ के अन्य सदस्य न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर और न्यायमूर्ति अशोक भूषण हैं।
मुस्लिम पक्षकारों की ओर से वकील राजीव धवन ने कहा कि अयोध्या में 'मस्जिद' को ध्वस्त करके हिन्दुओं ने अपनी छवि धूमिल की है। श्री धवन ने कहा कि यह आतंकवादी कार्रवाई थी। हिन्दुओं ने छह दिसम्बर 1992 को तालिबान की तरह काम किया था। इस पर श्री धवन और हिन्दुओं की ओर से पेश वकील के बीच जोरदार तकरार हुई। न्यायमूर्ति मिश्रा ने इस पर दोनों पक्षों को चेतावनी देते हुए कहा कि वे न्यायालय की गरिमा बनाये रखें। धवन ने कहा कि बाबरी मस्जिद 1562 में बनाई गई थी जो 1992 में जमींदोज कर दी गई। क्या वहां तब एक मंदिर था। उन्होंने कहा कि किसी हिन्दू को वहां पूजा करने का अधिकार नहीं दिया गया था।