नई दिल्ली। कांग्रेस तथा अन्य विपक्षी दलों ने मानवाधिकार संशोधन विधेयक 2019 को अधूरा करार देते हुए कहा है कि इसमें बहुत खामियां हैं और यह आयोग के अधिकारों को पूरी तरह से संरक्षित नहीं करता है इसलिए विधेयक को वापस लिया जाना चाहिए। कांग्रेस के शशि थरूर ने गुरुवार को लोकसभा में विधेयक पर चर्चा की शुरुआत करते हुए कहा कि मानवाधिकार आयोग हमारे मूल अधिकारों की रक्षा के लिए है। मानव अधिकारों का सरंक्षण सरकार की जिम्मेदारी है और इसे पेरिस सिद्धांत के अनुसार बनाया जाना चाहिए।
उन्होंने कहा कि आयोग की स्वायत्तता को गंभरीता से लिया जाना चाहिए और इसमें नियुक्ति को पारदर्शी तथा निर्धारित समय पर किए जाने की व्यवस्था करना आवश्यक है। उन्होंने कहा कि इस संशोधन विधेयक में बहुत खामियां हैं और इसलिए इसे वापस लिया जाना चाहिए। भाजपा के सत्यपालंिसह ने कहा कि मानवाधिकार की कल्पना भारतीय नहीं है। यह पश्चिम से आयी व्यवस्था है। इस संकल्पना के तहत 1789 में सबसे पहले फ्रांस में मानवा अधिकार आयोग का गठन हुआ था।
अमेरिका में 1791 में मानव अधिकारों की बात हुई थी। उसके बात 1948 में इस पश्चिमी संकल्पना को संयुक्तराष्ट्र में मूर्त रूप दिया गया और उसके आधार पर दुनिया के विभिन्न देशों में आयोग का गठन होने लगा। द्रविड मुनेत्र कषगम की कनिमौजी ने कहा कि मानवाधिकारों के लिए वैज्ञानिक सोच आवश्यक है। उन्होंने कहा कि दुनिया में मानवाधिकारों को लेकर हमारा रिकार्ड बहुत शर्मनाक है। विश की मानवाधिकार रैंकिंग में भारत का स्थान 21वां हैं और यह बहुत खराब स्थिति है।
उन्होंने कहा कि देश में अभिव्यक्ति की आजादी का गला रेता जा रहा है। लेखकों, विचारकों को मारा जा रहा है और दलितों तथा अल्पसंख्यकों के अधिकारों को हनन हो रहा है। हम मानवाधिकारों की रक्षा करने में असफल साबित हो रहे हें। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को जांच के अधिकार नहीं हैं। सरकार मानवाधिकार के आंकड़ों को छिपा रही है और मानवाधिकार के संरक्षण के लिए काम नहीं हो रहा है।
द्रमुक सदस्य ने कहा कि सरकार मानवाधिकार संशोधन विधेयक लेकर आयी है लेकिन इसमें पर्याप्त प्रावधान नहीं किए गए है। विधेयक में बहुत खामियां हैं और मानवाधिकार के संरक्षण से जुडी कमियों को इसमें शामिल नहीं किया गया है इसलिए सरकार को इस विधेयक को वापस लेना चाहिए।