मुंबई। 90 के दशक के कामयाब बल्लेबाजों में से एक माने जाने वाले संजय मांजरेकर ने अपनी कितान ‘इम्परफेक्ट’ में कई दिलचस्प खुलासे किए हैं। किताब कि कुछ बाते विवाद भी खड़ा कर सकती हैं। संजय ने पुराने क्रिकेटरों से लेकिर अपने पिता तक के बारे में कई बातें साझा की हैं।
भारतीय क्रिकेट टीम की टीम के बारे में उन्होने लिखा कि सीनियर खिलाड़ी कुर्सियों और सोफे पर बैठते थे और जूनियर खिलाड़ी जमीन पर पसर जाते थे। हालांकि भारतीय खिलाड़ी मैदान पर आपस में हिंदी, पंजाबी या मराठी में बात किया करते थे, लेकिन पता नहीं किन कारणों से टीम मीटिंग में हमेशा बातचीत अंग्रेजी में की जाती थी।
संजय मांजरेकर बताते हैं, 'कप्तान अजहरुद्दीन के बोलने के ढंग और कप्तानी पर हंसी आती थी। अक्सर वो बुदबुदा रहे होते थे और हमें उन्हें समझने के लिए उनके होठों के 'मूवमेंट' को पढ़ना होता था। उनके मुंह से आवाज ऐसी निकलती थी।जैसी एक पुराने शॉर्ट वेव ट्रांजिस्टर की आवाज। रेडियो के 'साउंड वेव्स' की तरह उनकी आवाज कभी ऊंची हो जाती थी तो कभी बहुत नीची।'वो कहते हैं, 'एक चीज मैंने और नोट की सीनियर खिलाड़ियों को जरूरत से ज्यादा सम्मान दिया जाता था। जब भी वो कमरे में घुसते थे, जूनियर खिलाड़ी एकदम से खड़े हो जाते थे।
सीनियर खिलाड़ियों की धाक इतनी थी कि कपिलदेव जैसा खिलाड़ी भी नेट पर गेंदबाजी करना अपनी शान के खिलाफ समझता था।'संजय मांजरेकर की नजर में वैसे तो अजहर निजी जिदगी में बहुत दरियादिल इंसान थे, लेकिन आदर्श कप्तान कभी नहीं थे।संजय बताते हैं, 'जब विपक्षी बल्लेबाज जम जाता था तो अजहर अक्सर 'ड्रिंक्स इंटरवेल' में हम सब खिलाड़ियों को जमा कर पूछते थे कि इसे कैसे आउट किया जाए? हर कोई अपनी सलाह देता था और इसके आधार पर अजहर तय करते थे कि मैं इस छोर से राजू से तीन ओवर गेंद कराऊंगा, दूसरे छोर से मन्नू गेंद करेगा।इसके बाद कपिल पाजी और श्रीनाथ आ जाएंगे। इसके बाद अजहर अपनी फील्डिंग पोजीशन पर चले जाते थे, ये सोचते हुए कि अब अगले 75 मिनट तक उन्हें कुछ भी नहीं करना है।'