भारत में एक से बढ़कर एक बिजनेसमैन हुए हैं, लेकिन बिजनेसवुमन कुछ ही हुई हैं। इन्हीं में से एक नाम है किरण मजूमदार शॉ का जिन्होंने आज से 45 साल पहले ‘Biocon’ कंपनी की शुरुआत की, जो आज की तारीख में 32,000 करोड़ रुपये की वैल्यू रखती है। लेकिन अब इस कारोबार का क्या होगा, इसे लेकर कुछ कहा नहीं जा सकता है, क्योंकि किरण मजूमदार शॉ की कोई संतान नहीं है।
भारत में कई कारोबारी घरानों के लिए ये बड़ी परेशानी है कि उनके पास अरबों डॉलर के एंपायर को संभालने वाला कोई वारिस ही नहीं है। किरण मजूमदार शॉ का भी नाम इन्हीं में शामिल है। बीते साल अक्टूबर में उनके पति जॉन शॉ का निधन हो गया था। किरण की भी उम्र अब 70 साल हो चुकी है।
किरण मजूमदार शॉ ने 1978 में मात्र 10,000 रुपये के निवेश से बायोकॉन की शुरुआत की थी। ये देश की पहली ऐसी कंपनी थी जिसने अमेरिका और यूरोप को एंजाइम्स का एक्सपोर्ट करना शुरू किया था। आज भी ये देश की सबसे बड़ी जेनेरिक एपीआई ( दवा बनाने में इस्तेमाल होने वाले फॉर्मूला) बनाने वाली कंपनियों में से एक है।
किरण मजूमदार-शॉ की कोई संतान नहीं है, लेकिन अभी तक उनकी तरफ से इस तरह की कोई चर्चा नहीं की गई है जिसमें ये साफ किया गया हो कि उनका उत्तराधिकारी कौन होगा। हालांकि बाजार पर नजर रखने वालों का मानना है कि ऐसी हालात में बायोकॉन प्रोफेशनल्स के हाथ में कारोबार की कमान सौंप सकती है, या किरण मजूमदार शॉ ट्रस्ट बनाकर रतन टाटा की तरह बाहर से कंपनी की कमान अपने पास रख सकती हैं।
बायोकॉन की तरह ही देश के फार्मा सेक्टर से जुड़ी एक और कंपनी है सिप्ला, जो अब बेची जा रही है। इसकी वजह सिप्ला के चेयरमैन युसूफ हमीद के वारिसों का कारोबार संभालने में कोई रुचि नहीं होना है। देश के बिजनेस घरानों में एक किस्सा बिड़ला परिवार का भी है। बिजनेस वुमन प्रियंवदा देवी बिड़ला के कोई संतान नहीं थी। इसलिए उन्होंने अपनी सारी संपत्ति अपने चार्टर्ड अकाउंट को सौंप दी थी। इसमें एमपी बिड़ला ग्रुप भी शामिल था। प्रियंवदा देवी बिड़ला की वसीयत के इस मामले ने मीडिया में भी खूब सुर्खियां बटोरी थीं।