गुड़ी पड़वा पर्व 18 मार्च को मनाया जाएगा। एक तरफ जहां हिंदू पंचांग के हिसाब से नववर्ष के आरंभ होने पर मंदिरों में पूजा-अर्चना होती है, वहीं घरों में भी गुड़ी पड़वा का उत्साह चरम पर होता है, इस दिन घरों में विशेष तौर पर श्रीखंड बनाया जाता है। शहर की अनेक राजनीतिक पार्टियां और संस्थान इस अवसर पर जगह-जगह गुड़ और धनिया वितरित करते हैं। गुड़ी पड़वा क्यों, कैसे मनाया जाता है इस पर दबंग के पाठकों के लिए विशेष रिपोर्ट-
चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा को गुड़ी पड़वा कहते हैं। इस दिन से हिंदू नववर्ष आरंभ होता है। इस बार विक्रम संवत 2075 का प्रारंभ 18 मार्च से हो रहा है।
गुड़ी का अर्थ
गुड़ी का अर्थ है विजय पताका। कहा जाता है कि इसी दिन ब्रह्माजी ने सृष्टि का निर्माण किया था। इसी दिन से नया संवत्सर भी शुरू होता है, अत: इस तिथि को ‘नवसंवत्सर’ भी कहते हैं। इसी दिन से चैत्र नवरात्र का आरंभ भी होता है।
गुड़ी पूजन का मंत्र
ॐ चतुर्भिर्वदनै: वेदान चतुरो भावयन शुभान।
ब्रह्मा में जगतां स्रष्टा हृदये शाश्वतं वसेत।।
सूर्य इस साल के राजा
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इस साल के राजा सूर्य होंगे और उनके मंत्री शनि महाराज रहेंगे। मतलब राजनीतिक उठापटक बनी रहेगी। चैत्र ही ऐसा महीना है, जिसमें वृक्ष तथा लताएं फलते-फूलते हैं। शुक्ल प्रतिपदा का दिन चंद्रमा की कला का प्रथम दिवस माना जाता है। जीवन का मुख्य आधार वनस्पतियों को शीतलता चंद्रमा से ही मिलाती है। इसे औषधियों और वनस्पतियों का राजा कहा गया है, इसलिए इस दिन को वर्षारंभ माना जाता है। प्राकृतिक रूप से इसे समझा जाए तो सूर्य ही सृष्टि के पालनहार हैं। अत: उनके प्रचंड तेज को सहने की क्षमता पृथ्वीवासियों में उत्पन्न हो, ऐसी कामना के साथ सूर्य की अर्चना की जाती है।
मान्यताएं
इसी दिन भगवान राम ने वानरराज बाली के अत्याचारी शासन से दक्षिण की प्रजा को मुक्ति दिलाई। बाली के त्रास से मुक्त हुई प्रजा ने घर-घर में उत्सव मनाकर ध्वज (गुड़ियां) फहराए, इसलिए इस दिन को गुड़ी पड़वा नाम दिया गया। अधिपति छत्रपति शिवाजी महाराज ने वर्ष प्रतिपदा के दिन ही भगवा विजय ध्वज लगाकर हिंदू साम्राज्य की नींव रखी थी।
इसलिए है खास
ब्रह्मा द्वारा सृष्टि का सृजन
मां दुर्गा की उपासना के पर्व नवरात्र का आरंभ
वरुण अवतार संत झूलेलाल का प्रकट दिवस
विक्रमी संवत् प्रारम्भं
भगवान रामचन्द्र का राज्याभिषेक
युगाब्दा संवत्सर का आरंभ
भारत सरकार के राष्ट्रीय पंचांग शक संवत का प्रारंभ
सिक्ख परंपरा के द्वितीय गुरु अंगददेवजी का जन्मदिवस
ऐसे सजाएं गुड़ी
यह करें- घर को ध्वजा, पताका, तोरण, वंदनवार, फूलों आदि से सजाएं व अगरबत्ती, धूप आदि से सुगंधित करें। दिनभर भजन-कीर्तन कर मंगल कार्य करना चाहिए। जीव मात्र के सुख और शांति की कामना करें। नीम की पत्तियां खाएं और दूसरों को भी खिलाएं। ब्राह्मण की अर्चना कर लोकहित में प्यासे लोगों के लिए प्याऊ की व्यवस्था करना चाहिए। इस दिन नए वर्ष का पंचांग या भविष्यफल ब्राह्मण के मुख से सुनें। इस दिन से दुर्गा सप्तशती या रामायण का नौ-दिवसीय पाठ करना चाहिए। आपसी विवाद भुलाकर समरसता का संकल्प लेना चाहिए। तेल से स्नान करना चाहिए।
विशेष भोज्य पदार्थ
गुड़ी पड़वा पर पूरन पोली या मीठी रोटी बनाई जाती है। इसमें गुड़, नमक, नीम के फूल, इमली और कच्चा आम मिलाया जाता है। गुड़ मिठास के लिए, नीम के फूल कड़वाहट मिटाने के लिए और इमली व आम जीवन के खट्टे-मीठे स्वाद चखने का प्रतीक होते हैं। यूं तो आजकल आम बाजार में मौसम से पहले ही आ जाता है फिर भी इस दिन आम और श्रीखंड खाने की प्रथा है।
किसी की निंदा न करें
पंडित राकेश शास्त्री ने बताया गुड़ी पड़वा का पर्व चैत्र नवरात्र में आता है अत: गुड़ी पड़वा के साथ ही संपूर्ण नवरात्र किसी की निंदा नहीं करना चाहिए।