पूजा-पाठ करने से शारीरिक स्वास्थ्य को बेहतर रखने में मदद मिल सकती है। एक नए अध्ययन के नतीजों में यह दावा किया गया है। अमेरिका की वैन्डरबिल्ट यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने पाया कि मंदिर, मस्जिद, चर्च या इनकी तरह के अन्य धार्मिक स्थानों पर पूजा-पाठ के लिए नियमित रूप से जाने वाले लोगों में ऐसा नहीं करने वाले लोगों के मुकाबले तनाव का स्तर कम था। इससे उनकी शारीरिक सेहत में सुधार हुआ, जिससे उनकी जीवन प्रत्याशा में भी बढ़ोतरी हुई। ये नतीजे 40 साल से 65 साल तक के वयस्कों के अध्ययन पर आधारित हैं।
पूजा-पाठ करने से इनके मौत के जोखिम में लगभग 55 फीसदी की कमी आई। शोधकर्ता मैरिनो ब्रुस ने कहा, हमारे निष्कर्षों ने इस धारणा की पुष्टि की कि धार्मिकता या आस्तिकता तनाव घटाने में मददगार होती है और दीघार्यु बनाती है। अध्ययन में धार्मिकता को पूजा-पाठ जैसे कार्यों में मौजूदगी के आधार पर निर्धारित किया गया। ब्रुस ने कहा, हमने पाया कि आध्यात्मिक रूप से लचीला बनाने वाली जगहें वास्तव में आपके स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होती हैं।
सर्वे में छह हजार लोग हुए शामिल
शोधकर्ताओं ने छह हजार लोगों का सर्वे किया। इस सर्वे में महिलाएं भी शामिल थीं। इसमें 64 फीसदी प्रतिभागी चर्च जाकर नियमित रूप से पूजा-पाठ करने वाले थे। शोधकर्ताओं ने प्रतिभागी के पूजा-पाठ में शामिल होने, मौत के जोखिम और शारीरिक क्षरण (एलोस्टैटिक लोड) का विश्लेषण किया। एलोस्टैटिक लोड शरीर से संबंधित कुछेक चीजों की माप होता है।
इन चीजों में रक्तचाप, कोलेस्ट्रॉल का स्तर, पोषण, मोटापा, हीमोग्लोबिन आदि शामिल हैं। एलोस्टैटिक लोड का स्तर ऊंचा रहने को अधिक तनाव का लक्षण माना जाता है। जो प्रतिभागी पूजा-पाठ नहीं करते थे उनमें एलोस्टैटिक लोड का स्तर अपेक्षाकृत ऊंचा था, जबकि चर्च जाकर पूजा-पाठ करने वाले प्रतिभागियों में एलोस्टैस्टिक लोड का स्तर काफी कम था। शोधकर्ताओं ने कहा, पूजा-पाठ का सकारात्मक प्रभाव शिक्षा, गरीबी, स्वास्थ्य बीमा और सामाजिक समर्थन जैसे अन्य मानकों में अंतर के बावजूद प्रभावी पाया गया। यह अध्ययन प्लॉस वन जर्नल में प्रकाशित हुआ है।