मान्यता है कि वट सावित्री व्रत सुहागिन महिलाओं द्वारा करने से पति पर आने वाले संकट समाप्त होते हैं। यही नहीं अगर दांपत्य जीवन में कोई परेशानी चल रही हो तो वह भी इस व्रत के प्रताप से दूर हो जाते हैं। सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और सुखद वैवाहिक जीवन की कामना करते हुए इस दिन वट यानी कि बरगद के पेड़ के नीचे पूजा-अर्चना करती हैं। इस दिन सावित्री और सत्यवान की कथा सुनने का विधान है।मान्यता है की इस कथा को सुनने से मनवांछित फल की प्राप्ति होती है। पौराणिक कथा के अनुसार सावित्री मृत्यु के देवता यमराज से अपने पति सत्यवान के प्राण वापस ले आई थी। ‘स्कंद' और ‘निर्णयामृत' इत्यादि ग्रंथों के अनुसार वट सावित्री व्रत पूजा ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की अमावस्या पर किये जाने का विधान प्राप्त होता है। ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार यह व्रत हर साल मई या जून महीने में आता है।
वट सावित्री व्रत का महत्व
वट का मतलब होता है बरगद का पेड, इस व्रत में वट का बहुत महत्व है। कहते हैं कि इसी पेड़ के नीच ही सावित्री ने अपने पति को यमराज से वापस पाया था। सावित्री को देवी का रूप माना जाता है। हिंदू पुराण में बरगद के पेड़े में ब्रह्मा, विष्णु और महेश का वास बताया जाता है।मान्यता के अनुसार ब्रह्मा वृक्ष की जड़ में, विष्णु इसके तने में और शिव उपरी भाग में रहते हैं। यही वजह है कि इन मान्यताओं के अनुसार इस पेड़ के नीचे बैठकर पूजा करने से हर मनोकामना पूरी होती है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार सोमवती अमावस्या का दिन व्रत उपवास स्नान एवं दान की दृष्टि से महत्वपूर्ण माना गया है। किस दिन तुलसी के वृक्ष के साथ पीपल के वृक्ष के पूजन का भी महत्व है जो जीवन में आने वाली अशुभताओं का निवारण करता है।
ज्योतिर्विद राजेश साहनी