आज अष्टमी तिथि प्रातः 11:41 बजे समाप्त होकर नवमी में प्रवेश करेगी तथा मध्यान्ह काल में भगवान राम का जन्मोत्सव मनाया जाएगा। आज अष्टमी उदया तिथि दुर्गा अष्टमी के रूप में मनाई जाएगी। नवरात्रों के क्रम में अष्टमी तिथि का व्रत हवन एवं कन्या पूजन आज संपन्न होगा। ध्यान रखने योग्य बात है नवरात्रों में उदया तिथि का महत्व बताया गया है जिसके अनुसार 13 अप्रैल को अष्टमी उदया तिथि होगी। कन्या पूजन एवं हवन के पश्चात 14 अप्रैल को नवरात्रि व्रतों का पारण भी किया जाना चाहिए क्योंकि व्रतों की पारना के लिए दशमी तिथि का शास्त्रों में निषेध बताया गया है। दशमी में केवल देवी का विसर्जन किया जाना चाहिए। इस वर्ष यह विसर्जन 15 अप्रैल को किया जाना शास्त्र सम्मत होगा।
शुभ योगों में आज रामनवमी भी
भगवान रामचंद्र जी का प्राकट्य दिवस इस वर्ष 13 अप्रैल को रामनवमी उत्सव के रूप में मनाया जाएगा। भगवान राम का जन्म चैत्र शुक्ल नवमी दिन गुरुवार पुनर्वसु नक्षत्र कर्क राशि एवं कर्क लग्न में हुआ था। इस वर्ष यह ग्रह स्थिति यां आज के दिन प्राप्त हो रही हैं। इस वर्ष कर्क लग्न से ग्रहों की स्थिति प्रभावपूर्ण है। श्री राम नवमी के दिन कर्क लग्न में अभिजीत मुहूर्त, अमृत की चौघड़िया, गुरु की होरा आदि बेला में नवीन उद्योग व्यापार का शुभारंभ तथा खाता पूजन व्यापारिक दृष्टि से वर्षपर्यंत अर्थोपार्जन तथा व्यापारिक प्रगति के लिए हितकर माना जाता है। श्री राम नवमी का दिन ज्योतिष शास्त्र में सिद्ध मुहूर्त की संज्ञा प्राप्त है अतः इस दिन नवीन कार्यों के निष्पादन हेतु तिथि वार नक्षत्र आदि के विचार की आवश्यकता नहीं होती।
आज अष्टमी कन्या पूजन
नवरात्र की नवमी तिथि कुमारी पूजन हेतु प्रशस्त है परंतु कुल भेद से अष्टमी तिथि भी कुमारी पूजन हेतु ग्रहण की जाती है। इस वर्ष चैत्र नवरात्रों की 13 अप्रैल को दुर्गाअष्टमी एवम 14 अप्रैल को दुर्गानवमी तिथि कुमारी पूजन हेतु प्रशस्त तिथिं मानी गई है। नवरात्र की दशमी तिथि को सिर्फ विसर्जन ही होना चाहिए। नवरात्रि व्रत की पारणा दुर्गानवमी के दिन कुमारी पूजन एवं होम के पश्चात की जानी चाहिए। शास्त्रीय निर्देश है कि नवरात्र के 8 दिवसीय व्रत रखते हुए नवम दिन पारना की जानी चाहिए। कन्या पूजन हेतु आवश्यक है कि कन्या 2 वर्ष से कम और 13 वर्ष से अधिक आयु की ना हो। सिद्धांतत: 2 से 10 वर्ष तक की कन्यायें ग्रहण की जानी चाहिए। नव दुर्गा के प्रतीक रूप में नौ कन्याएं आमंत्रित करनी चाहिए। शास्त्रों में पूजित की जाने वाली कन्याओं को अलग-अलग नाम की उपाधि प्राप्त है तथा उसी नाम से पूजन किया जाना चाहिए। सर्वप्रथम स्नानादि करके आई कन्याओं को आसन में बैठा कर उनके पाद प्रक्षालन करें, तत्पश्चात हाथों में कलावा बांधते हुए सिंदूर अर्पित करते हुए यथासंभव उनका श्रंगार कर दें। सात्विक पदार्थों द्वारा कन्याओं को प्रेमपूर्वक भोजन करा दें। जब वह पूर्णरूपेण तृप्त हो जाए तो उनकी आयु के अनुसार श्रंगार सामग्री एवं दक्षिणा भेट देते हुए उनके हाथों में अक्षत दें। श्रद्धा भक्ति पूर्वक उन्हें देवी स्वरूपा मानते हुए प्रणाम करें। इसके उत्तर में कन्याएं हाथ में लिए हुए अक्षत जजमान के ऊपर अपने आशीर्वाद के रूप में फेंक दें।
आज संधि पूजन नवरात्र में देवी की साधना उपासना के अंतर्गत संधि पूजा का विशेष महत्व माना गया है। नवरात्र में अष्टमी तिथि के अंतिम चरण में तथा नवमी के प्रारंभ में जो काल अवधि होती है उसे संधि पूजा काल कहा गया है। देवी पुराण के अनुसार इस अवधि में चामुंडा ने चंड और मुंड का वध किया था इसलिए देवी साधकों के लिए यह कालखंड साधना की दृष्टि से महत्वपूर्ण माना गया है। इस वर्ष आज 13 अप्रैल को प्रातः 11:17 से लेकर 12:05 अर्थात 47 मिनट की अवधि संधिकाल पूजन की होगी।
ज्योतिर्विद राजेश साहनी रीवा