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Astrology

भद्रा के बाद होगा इस वर्ष होलिका दहन

By Dabangdunia News Service | Publish Date: Mar 19 2019 1:19AM | Updated Date: Mar 19 2019 2:40AM
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होलिका के रूप में होली का उत्सव मनाए जाने की परंपरा वैदिककालीन है अर्थात होली वेदों से संबंधित पर्व है। जेमिनी एवं गुह्सूत्र में इसका प्रमाण प्राप्त होते हैं। होली पर्व से जुड़ी हुई कथाएं भी कम दिलचस्प नहीं, सर्वाधिक प्रचलित कथा हिरणकश्यपु की बहन होलिका द्वारा भक्त पहलाद को जलाकर मारने के प्रयास में और स्वाहा होने के साथ श्रीहरि के परम भक्त पहलाद के बच जाने की घटना की स्मृति में यह पर्व मनाया जाता है।
होली को काम दहन पर्व भी कहा जाता है। पौराणिक आख्यानों के अनुसार देवाधिदेव महादेव ने तपस्या में बाधा डालने पर कामदेव को अपनी तीसरी आंख खोलकर उसकी अग्नि से इसी दिन भस्म किया था।
लेकिन भविष्य पुराण का कथन इन सब से भिन्न है, जिसके अनुसार नारद के आग्रह पर युधिष्ठिर ने इस त्यौहार को प्रारंभ कराया था।
अन्य पौराणिक कथाओं के अनुसार ढूंढा नामक राक्षसी के कारण प्रजा त्रस्त थी, तब महाराज रघु ने गुरु के आदेशानुसार अग्नि जला कर एवं नगाड़े बजवा कर राक्षसी को बाहर कर दिया था।
परंतु भक्त पहलाद एवं होलिका की कथा ही वर्तमान होली की परंपराओं का आधार है। लिंग पुराण में फाल्गुनीका के नाम से होली का विवेचन है, तो वराह पुराण में पटवास विलासिनी होली का पर्व हेतु प्रयुक्त हुआ है।
होली को नावनन्नेष्टि यज्ञ पर्व भी कहा जाता है ।रवि की फसल इस अवधि में खेतों में तैयार हो जाती है, इस अन्न  को होला कहते हैं जिसे होलिका यज्ञ में हवन कर प्रसाद के रूप में खाया जाता है।
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