बेलपत्र भगवान शिव को अत्यधिक प्रिय है। यह पत्र शिव के 3 नेत्रों के समान दिखाई देता है। 3 की महिमा भगवान शिव के संबंध में यूं भी अत्यंत खास मानी गई है। त्रिशूल, त्रिनेत्र और शिवतिलक की 3 धारियां : ये 3 युग, 3 गुण और 3 लोकों का प्रतिनिधित्व करते हैं।
सोमवार शिव का प्रिय दिवस होता हैं। इसलिए इस दिन एक दिन पूर्व का तोड़ा हुआ बेलपत्र पूजन में उपयोग लेना चाहिए। खरीदकर लाया हुआ बिल्वपत्र किसी भी दिन प्रयोग कर सकते हैं। ऋषियों ने तो यह कहा है कि बिल्वपत्र भोले-भंडारी को चढ़ाना एवं 1 करोड़ कन्याओं के कन्यादान का फल एक समान है।
'अमृतोद्भव श्री वृक्ष महादेवत्रिय सदा।
गृहणामि तव पत्राणि शिवपूजार्थमादरात्।।'
बिल्वपत्र कब न तोड़ें :-
लिंगपुराण में बेलपत्र को तोड़ने के लिए चतुर्थी, अष्टमी, नवमी, चतुर्दशी, अमावस्या, संक्रांति काल एवं सोमवार को निषिद्ध माना गया है। शिव या देवताओं को बेलपत्र प्रिय होने के कारण इसे समर्पित करने के लिए किसी भी दिन या काल जानने की आवश्यकता नहीं है। यह हमेशा उपयोग हेतु ग्राह्य है। जिस दिन तोड़ना निषिद्ध है उस दिन चढ़ाने के लिए साधक को एक दिन पूर्व ही तोड़ लेना चाहिए। बेलपत्र कभी बासी नहीं होते। ये कभी अशुद्ध भी नहीं होते हैं। इन्हें एक बार प्रयोग करने के पश्चात दूसरी बार धोकर प्रयोग में लाने की भी स्कन्द पुराण के इस श्लोक में आज्ञा है-
'अर्पितान्यपि बिल्वानि प्रक्षाल्यापि पुन: पुन:।
शंकरार्यर्पणियानि न नवानि यदि क्वाचित।।'
बिल्वपत्र चढ़ाने का मंत्रः-
नमो बिल्ल्मिने च कवचिने च नमो वर्म्मिणे च वरूथिने च
नमः श्रुताय च श्रुतसेनाय च नमो दुन्दुब्भ्याय चा हनन्न्याय च नमो घृश्णवे॥
दर्शनं बिल्वपत्रस्य स्पर्शनम् पापनाशनम्। अघोर पाप संहारं बिल्व पत्रं शिवार्पणम्॥
त्रिदलं त्रिगुणाकारं त्रिनेत्रं च त्रिधायुधम्। त्रिजन्मपापसंहारं बिल्वपत्रं शिवार्पणम्॥
अखण्डै बिल्वपत्रैश्च पूजये शिव शंकरम्। कोटिकन्या महादानं बिल्व पत्रं शिवार्पणम्॥
गृहाण बिल्व पत्राणि सपुश्पाणि महेश्वर। सुगन्धीनि भवानीश शिवत्वंकुसुम प्रिय।