कलयुग में हनुमान जी को कलयुग के राजा की पदवी प्राप्त है। वह शक्ति, तेज और साहस के प्रतीक देवता माने गए हैं। एकादश रूद्र माने गए हैं,तो वेद वेदांग, ज्योतिष, योग, व्याकरण संगीत तथा मल्ल विद्या के आचार्य भी कहे गए हैं। पौराणिक मान्यताओं के आधार पर हनुमान जी सप्त चिरंजीवियों में से एक, आज भी सदेह पृथ्वी पर विचरण करते हैं। इनकी माता का नाम अंजना है इसीलिए उन्हें आंजनेय एवम् उनके पिता का नाम केसरी है, इसीलिए उन्हें केसरीनंदन भी कहते है। केसरी को कपिराज भी कहा जाता था,क्योंकि वे कपिक्षेत्र के राजा थे। हनुमानजीका जन्म कल्पभेद से कोई भक्त चैत्र सुद 1 मघा नक्षत्र को मानते हैं। कोई कारतक वद 14, कोई कारतक सुद 15 को मानते हैं। अर्थात कहीं चैत्र माह की पूर्णिमा को उनके जन्म का समय माना जाता हैं और कहीं कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी की महानिशा को। लेकिन अधिकतर जगह चैत्र माह की पूर्णिमा को मान्यता प्राप्त है। हनुमानजी की जन्मतिथि को लेकर भी मतभेद हैं। इस विषय में ग्रंथों में दोनों तिथियों के उल्लेख मिलते हैं, किंतु इनके कारणों में भिन्नता है। हनुमान जी के जन्म के विषय में यही कहा जा सकता है कि चैत्र शुक्ल पूर्णिमा उनका जन्मदिवस है और कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी उनका विजय अभिनन्दन महोत्सव। आज पूर्णिमा तिथि सायंकाल 04:42 मिनट तक रहेगी तथा आज उदया पूर्णिमा में भगवान हनुमान का जन्म दिवस भक्तों द्वारा मनाया जाएगा। आज शुक्रवार को हनुमान जयंती का विशिष्ट संयोग बन रहा है जो कि हनुमत पूजन हेतु विशेष है। आज श्री हनुमान जी का जन्म नक्षत्र चित्रा रात्रि 7:29 तक संचरण करेगा जो कि हनुमत पूजा हेतु विशिष्ट माना गया है।
सर्वप्रथम चढाएं हनुमानजी को चोला
पौराणिक मान्यता है कि हनुमान जयंती के अवसर पर श्री हनुमान जी को सिंदूर एवं चमेली के तेल से मिश्रित चोला चढ़ाने से हनुमान जी प्रसन्न होते हैं एवं समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती है। हनुमानजी को चोला चढ़ाने से पहले स्वयं स्नान कर शुद्ध हो जाएं और साफ वस्त्र धारण करें। चोला चढ़ाते समय एक दीपक हनुमानजी के सामने जला कर रख दें। दीपक में भी चमेली के तेल का ही उपयोग करें। चोला चढ़ाने के बाद हनुमानजी को गुलाब के फूल की माला पहनाएं और केवड़े का इत्र हनुमानजी की मूर्ति के दोनों कंधों पर थोड़ा-थोड़ा छिटक दें। अब एक साबुत पान का पत्ता लें और इसके ऊपर थोड़ा गुड़ व चना रख कर हनुमानजी को भोग लगाएं। इसके पश्चात तुलसी की माला से हनुमान जी के मंत्रों का जाप अथवा हनुमान चालीसा बजरंग बाण हनुमान अष्टक या हनुमान सहस्रनाम का विधिवत पाठ करने के पश्चात हनुमान जी की आरती करनी चाहिए।
चिरंजीवी हैं हनुमान
भगवान श्री राम के आशीर्वाद से हनुमान जी चिरंजीवी हुये। इस प्रकार हनुमान कपि सप्तम, निखिल भुवन पति श्रीराम के प्रतिनिधि के रुप में आज भी इस संसार में व्याप्त हैं। हनुमान भक्तों की, दुखियों की अथवा पीड़ितों की आर्त भाव से की गई प्रार्थना सुनते ही दौड़े चले आते हैं, क्योंकि वह सर्वसमर्थ, करुणानिधि, भक्तवत्सल होने के साथ-साथ घट घट वासी हैं। उनकी गदा में समस्त पाप ताप को हरने की क्षमता है, तो उनके नाम के उच्चारण मात्र से शाकिनी, डाकिनी, भूत प्रेत एवम् पिशाच आदि पलायित हो जाते हैं। सर्वकलुषनाशक आंजनेय सर्व व्यापक हैं, किंतु जहां-जहां श्रीराम का भजन कीर्तन होता है वहां आज भी वे तत्क्षण उपस्थित होते हैं। शरणागत वत्सल हनुमान जी की उपासना शक्ति प्रधान मानी गई है जो शीघ्र फलदाई है। भक्तों के संकट हरने के कारण यह संकट मोचन नाम से जगत प्रसिद्ध है। हनुमान साधना वीर एवं दास दो रूपों में की जाती है। विपत्तियों के निवारण के लिए वीर रूप की साधना तथा सुख सौभाग्य की प्राप्ति के लिए दास रूप की साधना प्रशस्त मानी गई है। वीर रूप की साधना के लिए राजसिक उपचार एवं दास रूप की साधना के लिए सात्विक उपचारों की प्रधानता है। गोस्वामी तुलसीदास हनुमत कृपा का विशेष उदाहरण है। बाहु पीड़ा के समय महावीर हनुमान जी से प्रार्थना करते हुए उन्होंने हनुमान बाहुक की रचना कर डाली। श्रीरामचरितमानस, विनय पत्रिका और कवितावली में भी उन्होंने हनुमान का महिमामंडन किया तो वही हनुमान चालीसा और संकट मोचन आदि स्वतंत्र पुस्तिकाओं में तुलसीदास जी ने अंतर ह्रदय से श्री हनुमान की बंदना की है।
ज्योतिर्विद राजेश साहनी